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सफलता

 सफलता के पैमाने क्या हैं? सफलता की परिभाषा क्या है? अमूमन सफलता को दो तरह से देखा जाता रहा है - किसी के जीवन की सफलता या किसी व्यक्ति की सफलता। यदि जीवन की सफलता की बात करें तो कैसा जीवन सफल माना जाता है? क्या जीवन कि परम सफलता मोक्ष की प्राप्ति नहीं? मगर मृत्योप्रांत मिलने वाला मोक्ष जंगल में नाचे मोर जैसा, दोनों को किसी ने नहीं देखा। और जिसको देखा नहीं, उस पर यकीन कर पाना मनुष्य के लिए आसान बात नहीं। क्या इसी कारण वश हम जीवन की सफलता को जोड़ दिया करते हैं जीवन के अन्य किरदारों से - नौकरी, पैसा, शादी, इत्यादि? क्या किसी एक किरदार का सफल होना सम्पूर्ण जीवन की सफलता को पूर्ण रूप से दर्शा सकता है?!  इन किरदारों का ज़िक्र व्यक्ति की सफलता में भी किया जाता है। किन्तु किसी एक व्यक्ति की सफलता हर कोई अपनी तरह से मापता है। यदि आपसे पूछा जाए की फलां व्यक्ति सफल है या नहीं, तो आप किस किरदार को सर्वोच्च स्थान पर रख कर उसकी सफलता मापेंगे? क्या उस व्यक्ति की खुशी उसकी सफलता का प्रमाण है, या उसका परिवार, या उसकी नौकरी, या उसकी आर्थिक स्थिति, या फिर कोई अन्य किरदार?  दूसरे व्यक्ति की सफलता मापने के

धागा

अपने दृढ़ निश्चय को याद करते हुए मैंने दोबारा अपनी आंखें मीच लीं। मगर नींद भी जैसे अपनी ही ज़िद पकड़ कर बैठी थी। रात में जल्दी सो जाने की एक और नाकाम कोशिश से उब कर मैंने आंखें खोल ही लीं। कमरे की लाइट जलाई और बिस्तर पर बैठी अपने किताबों के भंडार को देखती रही। रात के इस सूनेपन में तरीके से लगी हुई किताबों से भरा शेल्फ काफी मनमोहक प्रतीत हो रहा था। मुझे मालूम ही नहीं हुआ कि कब उन किताबों के आकर्षण ने मुझे बिस्तर से उतार कर शेल्फ के सामने ला कर खड़ा कर दिया। कुछ देर के विचार के बाद मैंने शेल्फ के पीछे से प्रेमचंद की एक किताब निकाली। किताब के कवर पर जमी धूल इस बात का प्रमाण थी कि इसे कुछ अरसे से छुआ नहीं गया था। परन्तु क्यूं? क्यूं मैंने प्रेमचंद की किताब शेल्फ में पीछे कहीं छुपा कर रखी थी, अपनी आंखों से दूर, अपनी पहुंच से दूर। अचानक इस सवाल का उत्तर मेरे ज़हन में उतरा और मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी होने लगी। मै डगमगाते क़दमों से बिस्तर की ओर गई और एक कम्बल ओढ़ कर बैठ गई। किताब मेरे हाथ में थी और मेरा दिमाग बीते वक़्त का भ्रमण कर रहा था। मै किसी खाली मैदान के इस तरफ खड़ी थी और इस वक़्त मु

बापूजी

आज फिर कुनाल बापूजी से झगड़ कर ऑफिस गया था। नाराज़गी जताने के लिए बापूजी ने भी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और कोने में पड़ी कुर्सी पर जा कर बैठ गए। बड़े शहर के आलीशान घर के इस बड़े कमरे में एक ये छोटा सा कोना ही था जिसे वो अपना कह सकते थे। उन्होंने सामने मेज पर रखी अपनी फटी पुरानी डायरी को उठाया और बीच के किसी पन्ने को खोल कर पढ़ने लगे। तभी मेज़ पर रखी उनकी छोटी सी अलार्म घड़ी उन्हें ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगी। उन्होंने अपनी डायरी को संभाल कर नीचे रखा, रेडियो का बटन दबाकर उसे ऑन किया और कोई चैनल सेट करने लगे।  छ: साल पहले अपनी मां के देहांत के बाद कुनाल बापूजी को गांव से शहर ले आया था। ये फैसला बापूजी के प्रति स्नेह से कम और लोगों के तानों के डर से ज़्यादा ओत - प्रोत था। शहर आने से पहले कुनाल ने गांव के घर के साथ साथ घर की सारी चीज़ें भी बेच दी थी। बापूजी कुनाल से लड़ झगड़ कर सिर्फ अपनी दो कीमती चीज़ें शहर ला पाए थे - रेडियो और डायरी। रेडियो - जो उन्हें उनकी पत्नी से सालों पहले उपहार में मिला था और डायरी - जिसमें वह सारी रूमानी पंक्तियां कैद थी जो इतने सालों में उन्होंने अपनी पत्नी

आखिरी पैग़ाम

  "ममता, कैसी हो तुम? अपना ख्याल ठीक तरह से रख रही हो ना? डॉक्टर से जो नई दवाई दिलवाई थी, वो आराम दे रही है ना? मै अच्छा हूं! तुम्हारी और राजू की बड़ी याद आती है। पता है, हमारे साथ एक नया लड़का जुड़ा है - रवि। रवि को भी राजू की ही तरह आम के आचार का बहुत शौक है। तुमने जो आचार दिया था, रवि दो महीने के अंदर ही सारा चट कर गया। राजू जब बड़ा हो जाएगा तो उसे भी हम फौजी बनाएंगे। बड़े होने से याद आया, इस बार भी राजू का जन्मदिन तुम्हे अकेले ही मनाना होगा। कश्मीर की घाटियों पर आतंकी हमला बढ़ रहा है। हमें भी कुछ महीनों के लिए वहीं तैनात किया जाएगा। इस कारण से मैं इस साल भी छुट्टियां बिताने गांव नहीं आ पाऊंगा! अगर मुमकिन हो सका तो कश्मीर की वादियों से तुम्हें चिठ्ठी ज़रूर भेजूंगा। वैसे सुना है कश्मीर की वादियों में जितनी सुंदरता है, उतनी ही ठंड भी। सोचते ही तुम्हारे हाथ से बुने स्वेटर की कमी खल उठती है। तुम मेरे लिए एक स्वेटर बुन कर तैयार रखना। कश्मीर से वापिस आ कर मैं तुम्हें और राजू को शिमला ले जाऊंगा। तुम्हारी उड़न खटोले पर बैठने की बड़ी इच्छा है ना? चिठ्ठी के साथ कुछ पैसे भी भेज रहा हूं

Helen

  "I can't believe you fell in love with 'me' - the weirdo", I said with teary eyes. "Who wouldn't fall in love with you?!", he said softly and brushed away the hair from my face as his lips touched mine. I sat there on the couch with a tub of popcorn in my hand as he went over to the cupboard in my living room, and started reading the titles on the movie tapes. I had a fascination for thrillers and horror movies ever since I was a child. Consequently, I had a huge stock of movies, which ranged from 80's classics to recent releases. He returned with three tapes in his hands - all classic horrors and slid one of them in the video player. I had wanted it to be a cliché date - movie at the theatre with candle light dinner later. But he insisted on coming to my place for a horror movie marathon. By the time the marathon ended, it was 2AM. We were both so tired that we immediately went to sleep. I was woken up by his shaky voice, "Stacy, wake up!

Don't Die before you Die

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On a cold night, when the leaves fluttered outside, Death visited a man. With horrific red eyes and a hoarse voice, it told the man that it had come to take his Life away from him. Without any objection whatsoever, the man agreed. As he prepared for his Life to be taken away, Death turned away from him and began to leave, alone. The man asked, “Wait! Aren’t you going to take my Life with you?” The reply he got in return shook him to the core. Death replied,” How can I take something from you which you don’t have? You were not even a bit resistant when I asked you for your Life, which shows that you have no love for your Life. You died a long time ago.” How often are we grateful for the life that we have been offered? How often do we count our blessings and enjoy the wonder that our life is? Amidst the fears, insecurities, worries, ambitions, we forget to live, depriving our life of the value that it is worthy of. By being too hard on ourselves and having sky high demands and

Revive the child within

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Have you ever observed a child laughing at the little things which we think to be stupid now? Ever noticed him being carefree and enjoying the best in every moment? We were the same as kids – innocent, carefree, making the best of every moment. But, as we grew up, we just made our lives more complicated. For us, happiness has become reaching great heights, acquiring surplus amount of wealth and possessing branded materials. The change in the definition of “happiness” has been so drastic that laughing our hearts out has become a thing of the past. While climbing the ladder and stressing over our future, we have failed miserably to live in the moment. Growing up was supposed to be a good thing. It was supposed to make us aware, more knowledgeable, more intelligent and smarter. But, why does this smartness have to come at the cost of our happiness? We are in an illusion that stressing today will grant us a stress-free future. The bubble of this illusion needs to be broken, for